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आम की बागवानी

आम की बागवानी से कमाई

आम की बागवानी से कमाई

आम भारत का राष्ट्रीय फल है। देश में इसका सर्वाधिक क्षेत्रफल उत्तर प्रदेश में पाया जाता है किंतु उत्पादन की दृष्टि से आंध्र प्रदेश ही श्रेष्ठ रहता है। रंग, सुगंध और स्वाद के मामले में आम देश ही नहीं विदेशों तक जाना पहचाना जाता है। यह विटामिन ए एवं बी के प्रचुर स्रोत है विटामिन ए नेत्रों एवं विटामिन बी शक्ति के स्रोत के रूप में काम आता है। कच्चे आम से अनेक प्रकार की चटनी, आचार, मुरब्बा, सिरप आदि का निर्माण किया जाता है। तरह के पेय पदार्थ बनाए जाते हैं। आम की बागवानी लाभकारी होने के कारण पूर्वांचल के और बुलंदशहर के कई इलाकों में बहुतायत में की जाती है।

 

आम की बागवानी के लिए मिट्टी पानी

आम की बागवानी हर तरह की मृदा में की जा सकती है लेकिन भूगर्भीय जल जिन इलाकों में सरी पाया जाता है | वहां इससे अच्छे फल की उम्मीद नहीं की जा सकती। इसकी श्रेष्ठ बढ़वार के लिए दो से ढाई मीटर मिट्टी की आवश्यकता होती है। आम के बाग 24 से 27 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान वाले इलाकों में अच्छे होते हैं। लेकिन 23.8-26. 6 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान को इसके लिए आदर्श तापमान माना जाता है। यानी ज्यादा गर्मी वाले इलाकों में इससे अच्छा उत्पादन नहीं मिलता।

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आम की उन्नत किस्में

आम की एक से बढ़कर एक किस्म तैयार हो चुकी है। कई किस्मों की मांग देश नहीं विदेशों तक होने लगी है। 

दशहरी किस्म सबसे लोकप्रिय है। इसे 10 दिन तक सुरक्षित रखा जा सकता है। बनावट स्वाद सुगंध और रंग की दृष्टि से यह बेहद ही खूबसूरत लगता है। 

दूसरी किस्म मुंबई हरा के नाम से जानी जाती है और यह है अगेती किस्म है। इसे माल्दा एवं सरोली भी कहते हैं। फल मध्यम आकार का अंडाकार, पकने पर भी हर अपन लिए हुए रहता है। इसे ज्यादा दिन तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। 

लंगड़ा भी दशहरे की तरह मध्य मौसम में पकने वाली किस्म है इससे दरभंगा रूह अफजा एवं हर दिल अजीत भी कहते हैं। 4 दिन की भंडारण क्षमता वाला यह आम बेहद मीठा होता है। 

रटोल किस्म को भी अगेती माना जाता है। इसका फल भी छोटे आकार का होता है। उसका फल छोटे आकार का अंडाकार, सुगंधित एवं मीठा होता है। 

चौसा पछेती किस्म है। इसे काजरी एवं खाजरी के नाम से भी जाना जाता है। 5 दिन की भंडारण क्षमता वाला यह आम आकार में बड़ा होता है।

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फजरी किस्म का आम पछेती होता है यानी कि बाजार में इसके फल देर से आते हैं । इसे फजली भी कहते हैं। धारण क्षमता कम होती है। 

राम अकेला भी देर से पकने वाली किस्म है इसका फल पकने के बाद भी खट्टापन लिए हुए रहता है। इसे अचार के लिए सर्वोत्तम किस्म माना जाता है। 

आम्रपाली किस्म दशहरी एवं नीलम किस्मों के सहयोग से विकसित की गई है। यह मध्य मौसम की बोनी व नियमित फलत वाली किस्म है। इसका एक हेक्टेयर में बाग लगाने के लिए ढाई मीटर भाई ढाई मीटर पर पौधा लगाने पर 16 सौ पौधे लगाए जा सकते हैं। 

मल्लिका किस्म नीलम एवं दशहरी के संयोग से विकसित हुई है। यह मध्यम मौसम की फसल है। यह नियमित रूप से चलने वाली मध्य मौसम की किस्में है। भंडारण क्षमता अधिक है किंतु फल कम लगते हैं। निर्यात के लिए इसके फलों को अच्छा माना जाता है। 

सौरभ किस्म का आम दशहरी एवं फजरी जाफरानी के संयोग से विकसित किया गया है | यह मध्य मौसम की किस्म है। 

गौरव किस्म के आम को दशहरी एवं तोतापरी आम हैदराबादी किस्मों के क्रॉस से तैयार किया गया है।

राजीव कृष्ण के आम को दशहरे एवं रोमानी किस्मों के सहयोग से तैयार किया गया है यह जुलाई के तीसरे सप्ताह में जाकर पकती है ।फल मध्यम आकार के होते हैं। 

कैसे लगाएं बाग

बाग लगाने के लिए मई से लेकर जून के महीने तक किस्म के अनुसार 11 से 13 मीटर की दूरी पर 1 वर्ग मीटर आकार के गड्ढे खोद देने चाहिए। कुछ दिन इन गड्ढों की मिट्टी को धूप में सूखने देना चाहिए ताकि मिट्टी में मौजूद कीट व अंडे समाप्त हो जाएं। गड्ढा खोदते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए की ऊपरी डेढ़ फीट मिट्टी बांई तरफ एवं नीचे की डेढ फीट मिट्टी दाईं तरफ डालनी चाहिए। हफ्ते 10 दिन मिट्टी को धूप लगने के बाद उसमें पर्याप्त सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर आधी मिट्टी गड्ढे में भर देनी चाहिए। ध्यान रहे की गड्ढे में खुदाई के समय बाई तरफ डाली गई ऊपरी डेढ़ फीट मिट्टी ही डालनी चाहिए। ऊपरी मिट्टी को ही उपजाऊ माना जाता है। तत्पश्चात या तो एक दो बरसात होने का इंतजार करना चाहिए अन्यथा गड्ढे में एक दो बार पानी भरने के बाद पौधे लगा देनी चाहिए। हम घरों में फल वृक्ष लगाते तो हैं लेकिन उनका पालन पोषण फसल की तरह से नहीं करते। नटू पौधों में पर्याप्त कम्पोस्ट डालते हैं और ना ही सुक्ष्म पोषक तत्वों का मिश्रण डालते हैं। हमें बागवानी के लिए समुचित रसायनों का प्रयोग करना चाहिए।

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एक वर्ष के आम के पौधे के लिए 10 किलोग्राम कंपोस्ट 100 ग्राम नाइट्रोजन 50 ग्राम फास्फोरस सौ ग्राम पोटाश 25 ग्राम कॉपर सल्फेट एवं 25 ग्राम जिंक सल्फेट पहले साल में थाना बनाकर डालनी चाहिए। अगले साल से इस मात्रा को 10 साल तक बढ़ाकर दोगुना कर लेना चाहिए। पौधे को 5 साल का होने के बाद बोरेक्स का प्रयोग शुरु कर देना चाहिए ‌। पांच विशाल 100 ग्राम इसके बाद प्रतिवर्ष 50 ग्राम मात्रा बोरेक्स की बढ़ाती जाना चाहिए।  

आम के कीट एवं रोगआम के कीट एवं रोग

  • आम को भुनगा कीट सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। उसके शरीर का आकार तिकोना होता है। इस कीट के नियंत्रण के लिए कीटनाशक का छिड़काव और आने और दो 3 इंच लंबा होने पर ही कर देना चाहिए। इसके 15-20 दिन बाद दूसरा छिड़काव करना चाहिए। इसकी को मारने के लिए किसी भी प्रभावशाली कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए इनमें मोनोक्रोटोफॉस, क्यूनालफास, डाईमेथोएट आदि शामिल हैं।
  • दूसरा कीट मैंगो मिलीबग यानी कढी कीट प्रभावित करता है। सफेद रंग का यह गीत शाखाओं का रस चूस लेते हैं इसके साथ ही एक चिपचिपा पदार्थ छोड़ते हैं जिस पर काली फफूंद उग आती है। बचाव के लिए दिसंबर माह में पौधों के छालों की बुराई करते समय मिथाइल पराथियान डस्ट 2% डेढ़ सौ से 200 ग्राम प्रति छाले मिला देनी चाहिए।
  • सिल्क कीट मुलायम टहनियों व पत्तियों की निचली सतह पर सैकड़ों की संख्या में चिपके रहते हैं पौधे और फल दोनों को प्रभावित करते हैं। नष्ट करने के लिए भी प्रभावी कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए।
  • आम को तना भेदक कीट से बचाने के लिए गिडार द्वारा तने में बनाए गए क्षेत्र में मोनोक्रोटोफॉस या डीडीवीपी का घोल छिड़ककर तने के छेद को गीली मिट्टी से बंद कर देना चाहिए।
  • शाखा भेधक कीट सबके लिए कार बोरवेल 50 डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में बनाए घोल के 2-3 छिड़काव 15 से 20 दिन के अंतराल पर पौधों पर करना चाहिए।
  • आम के पौधों पर खर्रा यानी कि पाउड्री मिलड्यू का प्रभाव भी होता है। रोकथाम के लिए डायलॉग कैप 48 सीसी 1ml प्रति लीटर पानी में घोलकर या घुलनशील गंधक की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से घोल कर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा कोयलिया, फल का आंतरिक सड़न, गोंद निकलने का रोग जैसी समस्याएं थी आम की फसल में रहती हैं। सभी रोगों का विशेषज्ञों की सलाह के बाद परीक्षण कराकर ही इलाज कराना चाहिए। इसके लिए हर ब्लाक स्तर पर स्थित कृषि रक्षा इकाई, जिला स्तर पर जिला कृषि अधिकारी एवं उप कृषि निदेशक तथा कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों के पास पौधों की संक्रमित टहनी ले जाकर रोग की पहचान और निदान कराना ज्यादा श्रेयस्कर रहेगा।

आम की बागवानी

आम की बागवानी

दोस्तों आज हम बात करेंगे, आम की बागवानी के विषय में, आम का नाम सुनते ही मुंह में पानी आना शुरू हो जाता है। साल भर आम का इंतजार लोग काफी बेसब्री से करते हैं। लोग आम का इस्तेमाल जूस, जैम, कचरी, आचार विभिन्न विभिन्न तरह की डिशेस बनाने में आम का इस्तेमाल करते हैं।आम भाषा में कहें तो आम के एक नहीं बहुत सारे फायदे हैं। यहां तक की कुछ दवाइयां ऐसी भी हैं। जिनमें आम का इस्तेमाल किया जाता है। आमकीफ़सल की पूरी जानकारी जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें।  

आम की फ़सल के लिए भूमि एव जलवायु :

आम की फसल किसानों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। इसलिए इसकी जलवायु और भूमि का खास ख्याल रखना चाहिए। आम की फसल के लिए भूमि एवं जलवायु का चयन किस प्रकार करते हैं जानिए: आम के फसल की खेती दो तरह की जलवायु में की जाती है पहली समशीतोष्ण एवं उष्ण जलवायु, आम की खेती के लिए यह दोनों जलवायु बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होती हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार आम के फसल की अच्छी प्राप्ति करने के लिए इस का तापमान लगभग 23.8 से 26.6 डिग्री सेंटीग्रेट सबसे अच्छा तापमान होता हैं। आम की खेती किसी भी तरह की भूमि यानी जमीन में की जा सकती है। लेकिन ध्यान रखें कि आम की खेती के लिए जलभराव वाली भूमि ,पथरीली भूमि तथा बलुई वाली भूमि आम की फसल उगाने के लिए अच्छी नहीं होती होती। आम की फसल के लिए सबसे अच्छी दोमट भूमि होती है और इन में जल निकास काफी अच्छी तरह से हो जाता है।

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आम की प्रजातियां :

आम की एक नहीं बल्कि विभिन्न विभिन्न प्रकार की प्रजातियां मौजूद है। यह प्रजातियां कहीं और नहीं हमारे देश में उगाई जाती हैं। और इनका स्वाद भी अलग अलग होता है। आम की प्रजातियां कुछ इस प्रकार है जैसे: लंगड़ा आम, दशहरी आम, चौसा आम, बाम्बे ग्रीन, अलफांसी, तोतापरी आम ,हिमसागर आम, नीलम, वनराज ,सुवर्णरेखा आदि आम की प्रजातियां है। इन प्रजातियों की जानकारी हमें कृषि विशेषज्ञों द्वारा दी गई है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार आम की कुछ और भी नई प्रजातियां उगाई जा रही हैं। जो इस प्रकार हैं जैसे:  आम्रपाली, दशहरी 51, दशहरी 5 ,मल्लिका, अंबिका, राजीव ,गौरव, रामकेला और रत्ना आदि आम की नई प्रजातियों में शामिल हैं।  

खाद एवं उर्वरक का इस्तेमाल :

आम के पेड़ों के चारों तरफ जुलाई के महीनों में,  नलिका बनाई जाती है और उन नलिका में 100 ग्राम प्रति नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फोरस की मात्रा इन नलिका मे दी जाती है। मृदा अवस्था सुधार के अंतर्गत भौतिक और रासायनिक में परिवर्तन लाने के लिए 25 से लगभग 30 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खादों का इस्तेमाल किया जाता है। पौधों में सड़ी हुई खाद देना बहुत ही ज्यादा उपयोगी होता है। किसान जुलाई और अगस्त के महीने में जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं। इन खादो का इस्तेमाल 25 ग्राम एजीसपाइरिलम और 40 किलोग्राम गोबर की खाद के साथ अच्छी तरह से मिक्स करने के बाद खेतों में डालने से आम की उत्पादकता काफी अच्छी होती है।

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आम की फसल की सिंचाई :

आम की फसल के लिए सिंचाई किस प्रकार करते है? जब किसान बीज रोपण कर लेते हैं तो लगभग प्रथम सिंचाई 2 से 3 दिन के भीतर  भूमि की आवश्यकता अनुसार कर लेनी चाहिए। खेतों में आम के छोटे-छोटे फूल आने शुरू हो जाए तो दो से तीन बार सिंचाई कर लेनी चाहिए। किसान खेतों में पहली सिंचाई पेड़ लगाते समय तथा दूसरी सिंचाई आम की कली जब अपना गोलाकार धारण कर ले तब की जाती है। तीसरी सिंचाई कली पूरी तरह से खेतों में फैल जाए तब करनी चाहिए। सिंचाई नालियों द्वारा ही करनी चाहिए क्योंकि इस क्रिया द्वारा पानी की बचत होती है किसी भी तरह का जल व्यर्थ नहीं होता हैं। इसीलिए सिंचाई की यह क्रिया बहुत ही महत्वपूर्ण है।  

आम की फसल में निराई गुड़ाई और खरपतवारों की रोकथाम :

आम की फसल के लिए खेतों में निराई गुड़ाई करना आवश्यक होता है क्योंकि निराईगुड़ाई के द्वारा खेत साफ-सुथरे रहते हैं। आम की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए खेतों में साल में दो बार अच्छी गहरी जुताई करते रहना चाहिए। क्योंकि इस प्रकार जुताई करने से किसी भी तरह का खरपतवार और भूमि कीट नहीं लगते हैं। भूमि में लगने वाले कीटनाशक कीट आदि भी नष्ट हो जाते हैं। खेतों में घास का नियंत्रण बनाए रखना आवश्यक होता है जिससे कि समय-समय पर खेतों में घास निकलती रहे।  

आम की फसल से होने वाले फायदे :

किसानों के लिए आम की फसल बहुत ही आवश्यक होती है, क्योंकि इसमें ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती हैं कम सिंचाई पर ही या काफी भारी मात्रा में उत्पादन करते हैं। इसीलिए किसानों के लिए आम की फसल लाभदायक फसलों में से एक है। किसानों के लिए यह बहुत बड़ा फायदा है आम की बागवानी करने का क्योंकि इसमें ज्यादा जल की जरूरत नहीं पड़ती है। आम की खेती शुष्क भूमि पर की जा सकती है। आम के साथ ही साथ इसके पत्ते, लकड़ियां आदि भी बहुत ही उपयोगी होते हैं। हिंदू धर्म में आम के पत्तों द्वारा पूजा पाठ किया जाती हैं। इसीलिए यह कहना उचित होगा कि आम का पूरा भाग बहुत ही ज्यादा उपयोगी होता है। मार्किट में उचित दाम पर आम बेचकर किसान अच्छा आय निर्यात कर लेते हैं। आम की फसल आय निर्यात का सबसे महत्वपूर्ण और अच्छा साधन होता है किसानों के हित में, आम की फ़सल में  किसी भी तरह की कोई लागत नहीं लगती है और ना ही किसी तरह का कोई नुकसान होता है। 

आम की विशेषताएं :

आम के फल में विटामिन ए की मात्रा होती हैं। सभी फलों के मुकाबले आम में विटामिन ए की भरपूर मात्रा पाई जाती है। ना सिर्फ विटामिन ए, बल्कि आम में और भी तरह के आवश्यक और महत्वपूर्ण विटामिंस मौजूद होते हैं जैसे : इसमें आपको विटामिन बी, विटामिन सी और विटामिन ई, की मात्रा प्राप्त भी होती है। विटामिंस के साथ ही साथ आम में आयरन तथा पोटैशियम, मैग्नीशियम और कॉपर जैसे आवश्यक तत्व भी मौजूद होते हैं। 

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं हमारा यह आम की फसल वाला आर्टिकल आपके लिए  बेहद ही फायदेमंद साबित होगा। यदि आप हमारे इस आर्टिकल से संतुष्ट है और आगे आम से जुड़ी जानकारी जानना चाहते हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा शेयर करते रहें। धन्यवाद।

किसान संजय सिंह आम की बागवानी करके वार्षिक 20 लाख की आय कर रहे हैं  

किसान संजय सिंह आम की बागवानी करके वार्षिक 20 लाख की आय कर रहे हैं  

बिहार के इस किसान ने आम की बागवानी आरंभ कर अपनी तकदीर बदल दी है। आज वह तकरीबन 20 लाख रुपये तक वार्षिक आमदनी कर रहे हैं। बिहार के सहरसा के जनपद के निवासी किसान संजय सिंह ने पारंपरिक खेती को छोड़ आम की बागवानी चालू की। आज वह प्रति वर्ष लगभग 20 लाख से अधिक आम का टर्नओवर कर रहे हैं। इसके पहले संजय सब्जियों की खेती किया करते थे। परंतु, उनके एक दोस्त की सलाह पर उन्होंने आम की बागवानी के विषय में सोचा और वह आज अपने क्षेत्र में लोगों के लिए एक मिशाल बन गए हैं।  

किसान संजय सिंह ने 20 बीघे में बागवानी शुरू की 

संजय जी ने अपनी विरासत की भूमि पर आम के पौधों को लगाने के विषय में विचार किया। उन्होंने जनपद के कृषि विभाग से आम की नवीन प्रजातियों की खरीदारी की एवं जैविक तरीके से इसकी बुआई की। संजय का कहना है, कि शुरु में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। परंतु, परिवार की सहायता से उन्हें काफी हौसला मिला। वहीं, आज उनकी सफलता की कहानी सबको पता है। वह विगत 8 वर्षों से आम की बागवानी कर रहे हैं। पारंपरिक खेती के मुकाबले में बागवानी फसलों का उत्पादन करना काफी फायदेमंद होता है।  

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संजय सिंह की आर्थिक स्थिति में भी आया सुधार 

संजय सिंह का कहना है, कि आम की खेती से बेहतरीन आमदनी होने लगी। साथ ही, उनके घर की स्थिति भी अच्छी हो गई। पहले खेती से उनको कोई फायदा नहीं होता था। परंतु, अब वह काफी बेहतरीन आमदनी कर अपने परिवार की देख भाल कर रहे हैं। 

 

संजय सिंह प्रतिवर्ष लाखों की आय करते हैं 

किसान संजय सिंह का कहना है, कि उन्होंने शुरुआत में कुछ ही पेड़ों से आम का उत्पादन कर बेचना शुरु किया था। परंतु, मांग बढ़ने के उपरांत उन्होंने इसकी खेती बड़े पैमाने पर चालू की और इससे उनको आमदनी काफी ज्यादा होने लगी। वह इन आमों की बिक्री से प्रति वर्ष 20 लाख रुपये तक की आमदनी कर लेते हैं। संजय जी ने अपने खेतो में कुल 300 से ज्यादा आम के पेड़ लगा रखे हैं। आपको बतादें, एक आम के पौधे की कीमत 400 रुपये के आसपास थी। यह 5 से 6 वर्ष तक फल देने योग्य होता है।